Trending

इंदिरा के अंदर, राजीव के बाहर होने की भविष्यवाणी... पढ़ें भारत के पहले 5 चुनावी सर्वेक्षणों की कहानी

एग्जिट पोल बनाने वाली एजेंसियां ​​वोटिंग वाले दिन वोट करके लौट रहे लोगों से सवाल पूछती हैं और फिर इसके आधार पर डेटा तैयार किया जाता है

इंडिया न्यूज़ : मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद एग्जिट पोल सुर्खियों में है. न्यूज़ चैनलों और अखबारों में अलग-अलग एजेंसियों के सर्वे रिपोर्ट दिखाए जा रहे हैं, जिसमें सरकार बनने और बिगड़ने का समीकरण है. मतगणना से पहले आने वाले एग्जिट पोल की विश्वसनीयता पर भले सवाल उठता रहा हो, लेकिन इसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।

भारत में पहला एग्जिट पोल 1967 में दिल्ली स्थित सेंटर फॉर द डेवलपिंग सोसाइटिज (सीएसडीएस) द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन इस एग्जिट पोल का सैंपल काफी छोटा था. 1980 के लोकसभा चुनाव में बड़े स्तर पर पहली बार एकसाथ कई एजेंसियों ने एग्जिट पोल तैयार किए गए थे।

1996 में दूरदर्शन ने सीएसडीएस के साथ समझौता कर एग्जिट पोल तैयार किया था. यह शो काफी हिट रहा था. वजह एग्जिट पोल का सटीक आंकलन था. इस एग्जिट पोल में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न आने की बात कही गई थी. टीवी चैनलों के आने के बाद चुनाव के दौरान एग्जिट पोल और चुनावी सर्वे का दबदबा बढ़ता गया. वर्तमान दौर में इसका बाजार काफी बड़ा है और 10 से ज्यादा एजेंसियां इसे बनाने का काम करती हैं।

क्या होता है एग्जिट पोल, कैसे करते हैं काम?

एग्जिट पोल का मतलब होता है- चुनाव के बाद मतदाताओं से वोटिंग पैटर्न समझकर उसे प्रकाशित करना. एग्जिट पोल ओपिनियन पोल से अलग होता है. ओपिनियन पोल चुनाव से पहले कराया जाता है, जबकि एग्जिट पोल चुनाव के बाद होता है।

एग्जिट पोल बनाने वाली एजेंसियां मतदान के दिन वोट डालकर लौट रहे लोगों से सवाल पूछती हैं. फिर इसी के आधार पर डेटा तैयार किया जाता है. सीएसडीएस से जुड़े प्रवीण राय के मुताबिक डेटा इकट्ठा करने में 4 चीजों पर सबसे ज्यादा फोकस रखने की जरूरत होती है।

1. भारत के मतदाताओं की विविधता, सामाजिक-सांस्कृतिक और अस्थिरता पर ध्यान देने की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

2. सर्वे का सैंपल साइज क्या जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है. सैंपल देने वाले की सत्यनिष्ठा भी परखने की जरूरत है।

3. सर्वे के दौरान यह तय करना होता है कि राय जानते वक्त वोटर्स पर कोई बाहरी दबाव न हो. इससे सर्वे पर असर पड़ सकता है।

4. सर्वे में समीकरण और उम्मीदवारों की ताकत को भी शामिल किया जाना चाहिए. पुराने रिजल्ट भी देखा जाना चाहिए।

डेटा इकट्ठा करने के बाद सर्वे एजेंसी उसका विश्लेषण करती है और फिर उसे प्रकाशित करती है. ब्राउन यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय के मुताबिक एग्जिट पोल में सीटों की संख्या बता पाना बहुत मुश्किल काम है।

वार्ष्णेय आगे कहते हैं- जिससे आप सैंपल इकट्ठा करते हैं, वो कितना सही है, यह निगरानी करना भारत में मुश्किल काम है।

कहानी देश के पहले 5 चुनावी सर्वे की

1980: आपातकाल के बाद इंदिरा सरकार आने की भविष्यवाणी

जनता पार्टी में बिखराव के बाद 1980 में मध्यविधि लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई. उस वक्त सबसे पहले सीएसडीएस ने प्री-पोल सर्वे करवाया. इस पोल में कांग्रेस की वापसी के संकेत मिले. सर्वे में अलग-अलग जातियों और धर्म के लोगों से वोटिंग को लेकर सवाल पूछा गया था.।

सर्वे में शामिल दलित वर्गों के 29 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस को वोट देने की बात कही थी. 11.8 प्रतिशत लोग जनता दल को फिर से वोट देने की बात कह रहे थे. ओबीसी वर्ग के 24.7 प्रतिशत लोग भी कांग्रेस के पक्ष में थे, जबकि जनता दल को सिर्फ 7.8 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग से सपोर्ट मिला था।

इस सर्वे में 3790 लोगों से सवाल पूछा गया था, जिसमें से 41 प्रतिशत लोगों ने इंदिरा की सरकार बनाने की बात कही थी. सीएसडीएस की तरह की मार्ग-इंडिया टुडे ने भी 1980 में चुनावी सर्वे कराए थे।

इस सर्वे में भी कांग्रेस की स्पष्ट वापसी की बात कही गई थी. लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की पार्टी को 353 सीटों पर जीत मिली और कांग्रेस को करीब 42 प्रतिशत वोट मिले थे।

1984:  एकता बड़ा मुद्दा, राजीव लहर की भविष्यवाणी

1984 के लोकसभा चुनाव में भी कई एजेंसियों ने चुनावी सर्वे तैयार किया. मार्ग-इंडिया टुडे के चुनावी सर्वे में कांग्रेस के भारी बहुमत के साथ आने की भविष्यवाणी की गई. सर्वे में कहा गया कि कांग्रेस को 366 से ज्यादा सीटें आ सकती हैं।

सर्वे में शामिल अधिकांश लोगों ने देश की एकता को बड़ा मुद्दा बताया. सर्वे में शामिल 11,297 लोगों में से 55 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस को वोट देने की बात कही थी।

1984 के चुनाव में कांग्रेस को 46.86% वोट मिले और पार्टी 403 सीट जीतने में कामयाब रही. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस या किसी भी पार्टी का यह अब तक का सबसे ज्यादा सीटें जीतने का रिकॉर्ड है।

1989 : वीपी के सबसे बड़े पीएम दावेदार होने की बात कही

लोकसभा चुनाव 1989 में पहली बार बड़े स्तर पर एजेंसियों ने चुनावी सर्वे किया. मार्ग-इंडिया टुडे ने इस चुनाव में देशभर में 77 हजार से ज्यादा लोगों से बात की. पहली बार चुनावी मुद्दे से लेकर चेहरे तक पर लोगों ने खुलकर राय दी।

मार्ग-इंडिया टुडे के इस सर्वे में कांग्रेस सरकार के पतन की भविष्यवाणी की थी. सर्वे में शामिल लोगों ने महंगाई और भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया. इतना ही नहीं, इस सर्वे में शामिल 63 प्रतिशत लोगों ने विपक्ष की ओर से वीपी सिंह को पीएम पद का सबसे बढ़िया दावेदार बताया था.10 प्रतिशत लोगों ने देवीलाल और 8 प्रतिशत लोगों ने रामकृष्ण हेगड़े को प्रधानमंत्री पद का सबसे उपयुक्त दावेदार बताया था।

1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई. पार्टी की सीट घटकर 403 से 197 पर पहुंच गई. संयुक्त मोर्चा के दलों ने मिलकर सरकार बनाने का दावा ठोक दिया. प्रधानमंत्री पद की रेस में उस वक्त वीपी सिंह, देवीलाल और चंद्रशेखर थे, लेकिन देवीलाल ने यह कहकर कुर्सी नहीं ली कि लोगों ने वीपी सिंह को यह कुर्सी दी है. देवीलाल ने संसदीय दल की मीटिंग में कहा कि लोगों ने भ्रष्टाचार की मुहिम को सराहा है और वीपी सिंह लोगों की पहली पसंद है, इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए।

1991: जब किया गया उस वक्त का सबसे बड़ा एग्जिट पोल 

राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार गिरने के बाद 1991 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई थी. चुनाव के बीच ही कांग्रेस के नेता राजीव गांधी की हत्या हो गई. चुनाव को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई गई. उस वक्त फ्रंटलाइन और मार्ग ने अलग-अलग चुनावी सर्वे तैयार किया था।

मार्ग ने 1991 के चुनाव में 90 हजार लोगों की राय लेकर सर्वे रिपोर्ट तैयार की थी. उस वक्त चुनावी विश्लेषण का काम जाने-माने चुनावी विश्लेषक प्रणव रॉय ने किया था. इस सर्वे में कांग्रेस को 265 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी।

सर्वे में ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस की स्थिति काफी मजबूत बताई गई थी. चुनाव का परिणाम भी काफी मिलता-जुलता निकला. कांग्रेस को 244 सीटों पर जीत हासिल हुई और पार्टी सरकार बनाने में कामयाब हो गई।

1996: जब दूरदर्शन ने करवाया पहला एग्जिट पोल

लोकसभा चुनाव 1996 में सरकारी चैनल दूरदर्शन ने सीएसडीएस के साथ मिलकर एग्जिट पोल करवाया. इस एग्जिट पोल में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की बात कही गई. सीएसडीएस के इस पोल में 9614 लोगों से राय ली गई थी।

सर्वे में शामिल 28.5 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस और 20.1 प्रतिशत लोगों ने बीजेपी को वोट देने की बात कही थी. करीब 40 प्रतिशत लोगों ने अन्य पार्टियों को वोट देने की बात कही थी. चुनाव परिणाम भी इसी तरह का आया।

बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन गई, लेकिन बहुमत जुटाने में नाकाम रही. कांग्रेस और संयुक्त मोर्चा के दलों ने मिलकर सरकार बना ली. यह सरकार 2 सालों तक देश में चलती रही, जिसमें 2 प्रधानमंत्री बने.1996 में आउटलुक-मार्श का सर्वे भी चुनावी परिणाम के काफी करीब रहा. इस सर्वे में बीजेपी को 192, कांग्रेस को 142 और अन्य दलों को 203 सीटें दी गई थी. वास्तव में बीजेपी को 189, कांग्रेस को 132 और अन्य दलों को 215 सीटें मिली।

 

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.

Related Articles

Back to top button